Friday, July 29, 2011

इकरार का भी इंतजार करते रहे ...
रहे वफ़ा में हम अकेले प्यार करते रहे ....नवीन सी दुबे

sher o shayari

मैरे सिंदूर को ठुकरा कर वो किसी और के दामन में चले गए ....
किसी से सुना की हमारे नाम पे आज भी ठंडी आहे लेते हे बेवफा सनम नवीन सी दुबे

तकदीर का खेल भी निराला होता हें..



कही पे अँधेरा तो कही उजाला होता हें ..
कोशिश कर सकता हें इन्सान कुछ पाने की
कही पे विश्वास का निवाला तो कही शक का प्याला होता हें ....
मुकद्दर बनाने वाले मुकद्दर बना के यू ना मुकर ...
तेरे कामो में भी तो सफ़ेद और काला(दिन रात ) होता हें
तकदीर का खेल भी निराला होता हें....नवीन सी दुबे



हर किसीका गम अपने सजा के देखिये ...
किसी गिरे हुवे को जरा उठा के देखिये ....
देखते देखते आपकी किस्मत ही बदल जायेगी ....
इन गमगीन ,गिरो की दुआए बहुत काम आयेगी ...
एक दोस्त को समर्पित जो
अपनी कमर के दर्द से परेशान हें
उसी के लिए ये लाइने महान हें .......नवीन सी दुबे







प्याज के छिलके हें जो निकलते जाते हें निकलते जाते हें ....
निकलते जाते हें निकलते जाते हें ....
निकलते जाते हें निकलते जाते हें .....बाकि कुछ नहीं रह जाते हें ...
यही तो जीवन हें .....जो आते हें खाली हाथ जाते हें .....नवीन सी दुबे





कभी तो फ़साना सुनाएगी अपना ये दुनिया
कब तक ये राज छुपाएगी ये दुनिया ...
मिटाने की चाहत हे सितमगारो की .....
क्या हमें बचा पायेगी ये दुनिया नवीन सी दुबे


कोई और आसरा नहीं दुआ के सिवा
कोई सहारा नहीं खुदा के सिवा
हमने भी बहुत दुनिया देखी है
मुश्किलो मे साथ निभाता नहीं कोई असली दोस्त के सिवा



रात हमे अँधेरे की तरफ ही ले जाती हें ....
फिर भी चाँद सितारों की रोशनी तो आती हें ....
वक्ता कभी सिसकता नहीं यारो ....किस्मत भी वक्त के साथ बदलजाती हें नवीन सी दुबे

Tuesday, June 7, 2011

रामदेव बाबा विवाद पर बहस ....नवीन सी दुबे


रामदेव बाबा विवाद पर बहस ....नवीन सी दुबे 

किसी भी चीज की  
  
 एक हद होती हें सन्यासियों को

 या योग गुरूओ को मर्यादा भंग करने का कोई

 अधिकार नहीं हें ...
पिछले  कुछ दिनों से देखने सुनने में आ रहा था की रामदेव बाबा योग सिखाते सिखाते सरकार को कानून का पाठ या सबक सिखाने में ज्यादा लग गए थे ...
जानता का समर्थन उन्हें मिल रहा था ..जिसका मूल कारण था की  वे निस्वार्थ भावना से जानता को योग की शिक्षा दे रहे थे और उससे कई लोगों को फायदा भी हुआ ...
पर जो मोटी फीस देगा वो सबसे आगे कम वाला बीच में और सबसे कम वाला सबसे पीछे ..जेसे हमें  किसी नाटक या सर्कस में जाने पर  आगे की सीट केलिए ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते हें वेसे  ही...
 जनता के अपार समर्थन और अगाध श्रद्धा के चलते हुवे एक योग शिक्षक जाने कब राष्ट्रीय संत .. महान योगी ..महान आत्मा   ..एवं परम पूज्य बनगए ये बात स्वयं रामदेव बाबा भी नहीं जानते हें..
 ...पर भोली भली जनता... 
जब लोग या संत लोभ की तरफ मुड़ जाते हें या  उन्हें उनके सलाहकार उस और ले जाते हें जहाँ उनका जाना  उचित नहीं होता ..तब से ही उस व्यक्ति का पतन शुरू हों जाता हें ..

बेहद तर्क पूर्ण और सत्यपरख तथ्य हें की क्या रामदेव बाबा जी को १००% सही मालूम हें की कितने रुपये किसके कहा पर हें  ...और क्या  ये सब सरकार के कहने पर काले धन के रूप में स्वीस बेंको में रखे गए हें .....
जरा सोचिये भारत देश आस्था  का देश हें यहाँ पर जेब कटने वाले की सजा कभी भी हाथ कटना नहीं हों सकती ...

किसी भी बाबा को अपनी भाषा व्यव्हार    आचार और विचार हमेशा  साफ रखना चाहिए ..एयर कंडीशन  में बैठ कर आमरण अनशन नहीं किया जाता आमरण अनशन का मतलब अन्न जल का त्याग मृत्यु  तक ... और बाबा बिसलेरी की बोतल से पानी पीते नजर आ रहे थे ...
अब  यदि ये ही बात हें की बाबा की बात क्योनही माने तो  हर आदमी सत्याग्रह करेगा ना देश  चलेगा ना ये सरकार  चलेगी ना काम काज होगा...
किसी भी प्रसिद्धि प्राप्त इन्सान को सोच समझ कर बोलना चाहिए ..
यहाँ में अवगत करा दू की हमारे एक महामंत्री इनदिनों अनावश्यक बोले ही जा रहे हें जो की उनकी गरिमा के खिलाफ हें नहीं बोलना चाहिए जिसका खामियाजाना हमारी पार्टी को उठाना पड़ेगा ...
किन्तु राम देव जी ने आपने बडबोले पन से उन कालाबाजारी और उन सब धन्नासेठो का काम लगवा दिया जिन्होंने अपने कालेधन की कमाई पाप से बचने के लिए पतंजलि में या कही अन्य गुप्त दान में  दी थी सोचिये और विचार दीजिये क्या मैरे तर्क ठीक हें या नहीं वेसे में पुलिस कार्यवाही जो रात में की गयी हें के प्रति अपना विरोध दर्ज करता हु 
-- 
नवीन सी दुबे 

Wednesday, May 25, 2011

हें फेस बुक यदि तू नहीं होता तो क्या होता ...


हें फेस बुक यदि तू नहीं होता तो क्या होता ...
कितने ही दोस्त एक दुसरे मिल ना पाते ...
अपने दर्दे दिल का हल ना सुना पाते ....
जब दिल की बात जुबान पर नहीं आ पाती हें ..
वो की वो ही बात फेसबुक पर पड़ी जाती हें .....
कई लोगों को शायर ..तो कवि .या रचनाकार बनाया हें
सचमानो तो फेसबुक ने ही ये पावन धर्म निभाया हें .....
कई दोस्तों की बीबियो ने मुझे बताया हें ...
की भाई सा भला हों ये फेसबुक का जिसमे ये समय लगाते हें ...
वर्ना आज भी वर्मा सा मिसेस वर्मा को अपनी कविता सुनाते हें ..
जो फेसबुक को नहीं अपनाते हें ..
वो सारा जीवन पछताते हें
फेसबुक जीवन का एक शानदार तजुर्बा हें..दौलत हें ..नशा हें ..दीवानगी हें ..
इस के बिना जीना जेसे जीते जी नरक मे रवानगी हें ...
हर हाल मे हम फेसबुक को अपनाएंगे ...
जीते जी तो क्या मार कर भी फेसबुक नहीं छोड़ पाएंगे ..
क्योकि फेसबुक का अहसान कभी भूल नहीं पाएंगे ..नवीन सी दुबे ...

Friday, April 29, 2011

कुछ बैरागी  सा होता जा रहा हूँ.....
मै अपनी धून में खोता जा रहा हु ...
चुबाहने से भी नहीं चुभते  आब ये बेशर्म कांटे...
सच में मै तो रहो में सिर्फ  फूल बोता जारहा हूँ .....
कोई कहे फ़कीर .....तो कोई कहे मस्त कलंद .....
मिलता नहीं हरेक को वो ..पर दिखता  उसी की दया का समंदर ...
नानक हों , भगवान हों, येसु मसी ,या तू खुदा हों  रहता हर  दिल के अन्दर ....
तुझ से मिलने का आप में खोता जा रहा हूँ .....
सच में मै तो रहो में सिर्फ  फूल बोता जारहा हूँ .....
कुछ बैरागी  सा होता जा रहा हूँ.....नवीन सी दुबे 

Monday, April 25, 2011

एक  खरगोश रोज एक लुहार की दुकान पर जा कर गाजर मांगता  की भाई जी गाजर हे ..

लुहार रोज मना कर देता ..

एक दिन लुहार ने गुस्से से खरगोश को गाजर मांगने  पर हथोडी मार  दी जिससे उसके २ दन्त टूट गए ...

आगले दिन लुहार की दुकान पर खरगोश फिर हाजिर था लुहार ने पूछा अबभी  मांगेगा गाजर ...

खरगोश बोला नहीं ...... पर  गाजर का ज्यूस हे क्या .... 
फेसबुक का अहसान कभी भूल नहीं पाएंगे ..नवीन सी दुबे ...
by Naveen C Dubey on 23 अप्रैल 2011 को 09:05 बजे


हें फेस बुक यदि तू नहीं होता तो क्या होता ...


कितने ही दोस्त एक दुसरे मिल ना पाते ...


अपने दर्दे दिल का हल ना सुना पाते ....


जब दिल की बात जुबान पर नहीं आ पाती हें ..


वो की वो ही बात फेसबुक पर पड़ी जाती हें .....


कई लोगों को शायर ..तो कवि .या रचनाकार बनाया हें

सचमानो तो फेसबुक ने ही ये पावन धर्म निभाया हें .....

कई दोस्तों की बीबियो ने मुझे बताया हें ...

की भाई सा भला हों ये फेसबुक का जिसमे ये समय लगाते हें ...

वर्ना आज भी वर्मा सा मिसेस वर्मा को अपनी कविता सुनाते हें ..

जो फेसबुक को नहीं अपनाते हें ..

वो सारा जीवन पछताते हें

फेसबुक जीवन का एक शानदार तजुर्बा हें..दौलत हें ..नशा हें ..दीवानगी हें ..

इस के बिना जीना जेसे जीते जी नरक मे रवानगी हें ...

हर हाल मे हम फेसबुक को अपनाएंगे ...

जीते जी तो क्या मार कर भी फेसबुक नहीं छोड़ पाएंगे ..

क्योकि फेसबुक का अहसान कभी भूल नहीं पाएंगे ..नवीन सी दुबे ...

Monday, April 4, 2011

प्रेरणा दायक प्रसंग राजा भोज और एक बुढ़िया की कहानी


प्रेरणा दायक प्रसंग
राजा भोज और एक बुढ़िया की कहानी

एक समय की बात है कि राजा भोज और माघ पंडित सैर को गये थे । लौटते समय वे दोनों रास्ता भूल गये । तब वे दोनों विचार करने लगे, रास्ता भूल गये अब किससे पूछे । तब माघ पंडित ने कहा कि पास के खेत में जो बुढिया काम कर रही है उससे पूछे ।

दोनों बुढ़िया के पास गये, और कहा राम राम माँ जी । यह रास्ता कहाँ जायेगा । बुढिया ने उत्तर दिया कि यह रास्ता तो यही रहेगा इसके ऊपर चलने वाले जायेंगे । भाई तुम कौन हो बुढ़िया ने पूछा ।

बहिन हम तो पथिक है राजा भोज बोला ।
बुढ़िया बोली पथिक तो दो है एक सूरज और एक चन्द्रमा । तुम कौन से पथिक हो ।

भोज बोला हम तो राजा है ।
राजा तो दो है एक इन्द्र और एक यमराज । तुम कौन से राजा हो बुढ़िया बोली ।

बहन हम तो क्षमतावान है माघ बोला ।
क्षमतावान दो है एक पृथ्वी और दूसरी स्त्री । भाई तुम कौन हो बुढ़िया बोली ।

हम तो साधू है राजा भोज कहने लगा ।
साधू तो दो है एक तो शनि और दूसरा सन्तोष । भाई तुम कौन हो बुढ़िया बोली ।

बहिन हम तो परदेसी है दोनों बोले ।
परदेसी तो दो है एक जीव और दूसरा पे़ड़ का पात । भाई तुम कौन हो बुढ़िया बोली ।

हम तो गरीब है माघ पंडित बोला
गरीब तो दो है एक तो बकरी का जाया बकरा और दूसरी लड़की । बुढ़िया बोली ।

बहिन ऊ हम तो चतुर है माघ पंडित बोला ।
चतुर तो दो है एक अन्न और दूसरा पानी । तुम कौन हो सच बताओ ।

इस पर दोनों बोले हम कुछ भी नहीं जानते । जानकार तो तुम हो ।
तब बुढ़िया बोली कि तुम राजा भोज हो और ये पंडित माघ है । जाओ यही उज्जैन का रास्ता है

.नवीन सी दुबे

Monday, March 21, 2011

उनके आने की आहट का खुमार कितना अजीब हें ...
रास्ते के मंदिर दिखे ना मज्जिद दिखी
राहे उल्फत का करार ये कितना खुशनसीब हें
उन्हें हम दिखे हमें सिर्फ वो दिखी
(इसी लिए प्यार को अँधा कहा गया हें )
 

Saturday, February 19, 2011

सही क्या ? ...  गलत क्या ?..समझ नहीं पता हूँ 
तुन्हें चाह कर ही तो मे चाहता हूँ .......
मायूसी  हाथ लगाती हें जब जान कर भी तुम्हे ना समझा पता हूँ ....
चलो कुछ रिश्ता बदल देते हें .....
मै वाहन आता हूँ ...तुमको यहाँ बुलाता हूँ .....


2##
अपना फ़साना मे सबके बीच गता नहीं ..
हर एक को हर बात मे बताता नहीं......
आँखों मे ही पड़ लेते हें दोस्त दर्दे दिल को ....
परेशानियाँ बता के मे अपनी सबको सताता नहीं ......नवीन सी दुबे 

Thursday, February 17, 2011

जनाजे में कन्धा देने वाले खुश नसीबो को मिलते हें
वर्ना ये दुनिया तो जीते जी दफ़न कर देती हें
पहनाती हें रोज नए कपडे
पर जुल्मो से उन्हें कफ़न कर देती हें
जीते जी साथ निभाना कोई मुश्किल नहीं
मर कर साथ निभाने को सनम कहते हें 



नवीन सी दुबे 

Wednesday, February 16, 2011

मे अपने आप से झूट बोलने लगा हूँ ..

 मे अपने राज खुद खोलने लगा हूँ ..

फरेब से भरी दुनिया मे ....

मे अपने आप को खुद तोलने लगा हूँ ...

नवीन सी दुबे 

Sunday, February 6, 2011

हिन्दुस्तानी पुरे विश्व मे पाओगे


हें  पाकिस्तान तुझे अपने नाजायज रिशतो की कसम 

कर दे कर दे अपनी हेवानियत तू ख़तम ..

तू भेजेगा  कितने isi हिजबुल ,तय्येबा या कसाब,..

हर एक का करेंगे हम बराबर हिसाब ..

तुझे पता हें..

यहाँ पर क्रिकेट प्रेमिका के लिए मंत्री भी  हटाये जाते हें 

घोटाले बाज राजा हों या राडिया सब जेल जाते हें..

ये बड़ी अजीब दास्ताँ हें इनके बनने बनाने की..

नीरा जी की कहानी हें सुनने सुनाने की  ...

यहाँ चारा ,खाद्यान और खेल का घोटाला होता हें.. 

ये जानते हुवे भी हर नागरिक घोड़े  बेच के सोता हें..

पत्रकार उधोगपति अधिकारी और नेता ..

इनमेसे  कुछ  % ही नहीं  रिश्वत लेता...

राहुल जी , सोनिया जी , मनमोहन जी सहित कुछ ही ईमानदार हें ...

बाकि बहुत सारो के चेहरे शानदार रूप से  दागदार हें ....

तू समझ यार हमारे  यहाँ पर बड़े बड़े झमेले हें ..

स्पेक्ट्रम कोड़ा कलमाड़ी राजा के खेले हें ..

वेसे भी  मरना हमारे लिए कोई नयी बात नहीं हें 

हमारे  किसान पानी ओले सूखे के लिए जान दे  देते हें 
महाराष्ट्र  के बाद अब मध्यप्रदेश मे मुआवजे मे जान ले लेते हें.

बिजली  पानी के लिए जानता मारी मारी फिरती हें 

बिसलेरी की बोतल 5 स्टार मे 125 मे मिलती हें
आधे  देश मे सुखा आधे देश मे बाड़ होती हें
बचाव के बाद एजेंसिया राहत के सामान के साथ सोती हें ..

अरे जो कही नहीं हों सकता   हें वो यहाँ हों जाता हें 

यहाँ पर भगवान  का फेसला भी अदालत मे लिया जाता हें 

इस लिए ऐ बेवकूफ दुश्मन हम तो यू ही परेशान हें .
.
यार  इस बड़ती आबादी पे तो उपरवाला भी हेरान हें 

तुम कितने और हिनुस्तानियो को मार पाओगे 

जब होगी गणना तुम से ज्यादा  हिन्दुस्तानियों  को  पाओगे 

नवीन सी दुबे

Friday, February 4, 2011


कुदरत के भी कुछ नियम होते हें ....
अश्क को ओसं की बूंदों मे भिगोते हें .......
नादानी की हें हमने दरख्तों को काटने की ....
पशु पक्षी जिनके साये मे सोते हें .....
नासमझो ना छेड़ो इन बेजुबानो को....
कातिल इनके ख़ून के आंसू रोते हें 
कृपया  पेड़ बचाओ 
नवीन सी दुबे

Friday, January 28, 2011

समंदर की लहरों को 
पकड़ने की हर कोशिश नाकाम होती हें ...
हर पल हर बार वो जन्म ले कर
 नया  अंजाम लेती हें .....
रेत जल हवा पृथ्वी और मौत 
को कोई हाथो से ना पकड़ पाया ....
ये महल ढहाती हें ...
ये बाढ़  लाती हें...
ये आंधियाँ चलती हें ..
ये भूकंप लाती हें 
ये यमलोक पहुँचाती हें 
तो इसी कोशिश ना करो की हमको पछताना  पड़े 
समाज मे मुहं को शर्म से छिपाना  पड़े ....

Thursday, January 27, 2011

क्या भारत मै भ्रष्टाचार कोई कम कर पायेगा ?


26 जनवरी   का  दर्द  

खबर नहीं आई किसी के आहत होने की
संगीनों के साये मै मनाते  हें हम तिजो त्यौहार ..
भ्रष्टाचारी मंत्री और अफसर बेशुमार ...
तिरंगा लहराने श्रीनगर जायेंगे
पर एक भी गरीब को रोटी ना खिलाएंगे..
मुद्दाविहीन विपक्ष,. चुपचाप सत्ता पक्ष .
बिखर गए राजीव जी के लक्ष्य ..
भारत तो अपने आप भी आगे बढ जायेगा 
पर क्या भारत मै भ्रष्टाचार कोई कम कर पायेगा ???????
नवीन सी दुबे

Friday, January 21, 2011

वो बचपन की नादानियाँ अजीब सी लडाइयां 
वो हर किसी को हरकुछ कह देने का भोलापन,
वो स्कूल ना जाने का जिद्दीपन ,
वो चोकलेट की रिश्वत,,,,,,, .
वो माँ का समझाना 
फिर स्कूल की बस मै चडाना.....
आलू  की सब्जी पराठा या ब्रेड जेम  आचार के साथ 
वो मेडम की मार , या सर की फटकार ...
वो पाठ का  याद करना ..वो रट्टा लगाना ...
वो घर आकर  फिर से स्कूल ना जाने की जिद करना 
वो मम्मी का दुलार, प्यार से खाना खिलाना   ..
वो पतंग बजी , गिल्लिदंडा ,सतोलिया ,गधामार की हुल्ल. ...
वो व्यापर ,केरम बौट.,अष्ट चंग पे , लट्टू ...
ये खेल कहाँ  चले गए ..
कहा गयी वो स्कूल की ट्रिप 
कहाँ गए  वो स्काउट की ड्रील ...
सब ख़तम  हो गए 
हाय रे ये सब हमें अब नसीब नहीं हें
शायद हम अब बड़े हो गए .बचपन को खो गए
नवीन सी दुबे 

Thursday, January 20, 2011

सच बोलने का कुछ तो नुकसान उठाना पड़ेगा ....
तुम्हे भी सुकरात की भांति जहर गले लगाना पड़ेगा ....
हो चाहे जोभी अंजाम सच बोलने का ,,,
पर कहे को याद करने का  माथा नहीं पचाना पड़ेगा ,,,,,,,
,,नवीन सी दुबे 

Wednesday, January 19, 2011

"किनारा".........

समंदर की लहरों से हम नही डरते हें ....

आखिर मै नाविक भी हमारा ही रुख करते हें ......
उनका सहारा भी मै ही हूँ, ..?? ........ जिन से अपने भी किनारा करते हें
यूही नहीं लोग हमें किनारा कहते हें ............नवीन सी दुबे 

Friday, January 14, 2011

क्या बताये की रात मै भी धुप  होती हें .....
क्या बताये की तूफान मै भी ख़ामोशी होती हें ......
किसी के ना मिलने का गम बहुत बड़ा हें यारो ,......
एक बार ये कम्बखत  इश्क  करके तो देखो ......नवीन सी दुबे  .

Sunday, January 9, 2011

" कई तो तस्वीरो के साथ दफनाये जाते हें

हर चार दिन मै बदल जाती हें तस्वीर आपकी ...


हर तस्वीर मै अलग अदा होती हें आपकी .....

इन तस्वीरो के भी दीवाने पाए जाते हें ....
.
शायद मालूम ना  हो आपको की

" कई तो तस्वीरो के साथ दफनाये जाते हें "

 नवीन सी दुबे
 १० जनवरी २०११ 

Saturday, January 8, 2011

ये अजीब सी उदासी क्यों छाने लगी
मेरे मन को बेचेनी क्यों सताने लगी
सर्द से इस मोसम मै ......ठिठुरती इस ठण्ड मै .....
मैरे चेहरे पर पसीने की बूंदे आने लगी ...
या खुदा इसे तेरी रहमत मानू या कुदरत का करिश्मा ......
मुझे कुदरत की हकीकत समझ मै आने लगी ......नवीन सी दुबे मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी २८/१२/2011