वो बचपन की नादानियाँ अजीब सी लडाइयां
वो हर किसी को हरकुछ कह देने का भोलापन,
वो स्कूल ना जाने का जिद्दीपन ,
वो चोकलेट की रिश्वत,,,,,,, .
वो माँ का समझाना
फिर स्कूल की बस मै चडाना.....
आलू की सब्जी पराठा या ब्रेड जेम आचार के साथ
वो मेडम की मार , या सर की फटकार ...
वो पाठ का याद करना ..वो रट्टा लगाना ...
वो घर आकर फिर से स्कूल ना जाने की जिद करना
वो मम्मी का दुलार, प्यार से खाना खिलाना ..
वो पतंग बजी , गिल्लिदंडा ,सतोलिया ,गधामार की हुल्ल. ...
वो व्यापर ,केरम बौट.,अष्ट चंग पे , लट्टू ...
ये खेल कहाँ चले गए ..
कहा गयी वो स्कूल की ट्रिप
कहाँ गए वो स्काउट की ड्रील ...
सब ख़तम हो गए
हाय रे ये सब हमें अब नसीब नहीं हें
शायद हम अब बड़े हो गए .बचपन को खो गए
नवीन सी दुबे
शायद हम अब बड़े हो गए .बचपन को खो गए
नवीन सी दुबे
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