Friday, April 29, 2011

कुछ बैरागी  सा होता जा रहा हूँ.....
मै अपनी धून में खोता जा रहा हु ...
चुबाहने से भी नहीं चुभते  आब ये बेशर्म कांटे...
सच में मै तो रहो में सिर्फ  फूल बोता जारहा हूँ .....
कोई कहे फ़कीर .....तो कोई कहे मस्त कलंद .....
मिलता नहीं हरेक को वो ..पर दिखता  उसी की दया का समंदर ...
नानक हों , भगवान हों, येसु मसी ,या तू खुदा हों  रहता हर  दिल के अन्दर ....
तुझ से मिलने का आप में खोता जा रहा हूँ .....
सच में मै तो रहो में सिर्फ  फूल बोता जारहा हूँ .....
कुछ बैरागी  सा होता जा रहा हूँ.....नवीन सी दुबे 

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